बाबुल
वहाँ के आँगन में सहेलियों संग गप्पे लड़ा सकूँगी,
जो चाहे पहन सकूँगी और
जब चाहे आपसे मिलने आ सकूँगी?
अम्मा- बाबा,
क्या आप लोग मुझे नए रूप में उस नए घर में मिलोगे
जो मुझे बहू नहीं अपनी बिटिया मानोगे,
मेरे दुःख दर्द भी बाँटोगे,
लोग क्या कहेंगे इस सोच के नीचे तो नहीं दबाओगे
डर लगता है कि कहीं से आवाज़ न आए
जो अंदर तक झकझोर जाए कि
पराए घर से आयी है
बेटी नहीं यह तो बहू ही कहलाई है|
बाबा, तुमने तो कहा था कि
मैं पराया धन हूँ और एक दिन मुझे अपने घर जाना है
पर यहाँ भी मैं पराई ही हूँ
बहू ही हूँ बेटी तो नहीं बन पाई हूँ |
यह घर भी पराया वह घर भी पराया
तो मैं किस घर जाऊँ बाबा
अपनी खुशियाँ किसे दिखाऊँ बाबा
और अपनी व्यथा किसे सुनाऊँ बाबा?
बस यही सोचती रहती हूँ
हाँथों की लकीरों में ढूँढती रहती हूँ
और ख़ुद से ही यह सवाल करती रहती हूँ
कि क्या दोनों घर मेरे नहीं हो सकते और
क्या मैं दोनों घरों की बेटी नहीं हो सकती??
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