कोरोना स्पेशल
कोरोना स्पेशल
बहुत से प्यारे दोस्तों ने कहा कि
बहुत दिनों से तुमने कुछ लिखा नहीं
हमने अनमने मन से कहा
"क्या करें सखियों अब तो
बस एक ही ख़याल ज़हन में रहता है
कि कहीं सिंक में बर्तन भरे तो नहीं | "
क्या कविता, क्या शायरी सारा ख़ुमार उतर गया,
बर्तन धोते- धोते अब तो हाँथों का मैल भी उतर गया |
जब से घर में नज़रबंद हुए हम,
यकीन मानिये काजल लगाना तो दूर की बात
बालों में कंघी करना भी भूल गए हम |
पार्लर जाना बंद हुआ और क्रूर सिंह बन गए हम,
उम्मीद है एक दूसरे को पहचान लेंगे
ग़र टकराए किसी रास्ते पर हम |
पहले जिम में डम्बल उठाए नज़र आते थे हम,
आजकल झाड़ू पोंछा लिए रहते हैं
कम है क्या यह ग़म |
हम तो अपने मन को यही बोल के समझा लेते हैं कि
ज़रा उन बहनों को देखो जिनका
ज़ुम्बा बंद, किटी पार्टी बंद और शॉपिंग भी बंद |
इतना निपुण तो हमारी माँ भी हमें न बना पायीं
जितना आत्मनिर्भर मोदी जी ने और
सर्वगुण संपन्न इस कोरोना ने बना दिया और
न जाने क्या क्या काम सिखा दिया |
अच्छा, तो आज का प्रवचन यहीं समाप्त हुआ
उम्मीद है कि हमारे तरकश से निकला यह तीर
आपके दिल के पार हुआ |
बस यही रख़ते हैं हम चाह
सबके जीवन में रहे उत्साह
उम्मीद की किरण जगमगाए सबके दिलों में
कि बीत जाएगा यह अँधेरा( कोरोना ) कुछ ही दिनों में | |
Comments
Post a Comment