चाँद मुस्करा रहा था
कल रात झरोखे से देखा तो,
चाँद मुस्करा रहा था
इतना मुस्करा कर,
जाने कितने राज़ वह छिपा रहा था |
उसकी मुस्कराहट थी एक अजब पहेली,
न मैं बूझ पाई और न मेरी सहेली |
वह चाँद कुछ अपना सा लग रहा था
मानों मुझसे ढेरों बातें कर रहा था
मेरी तरह वह भी,
अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए,
मानों कोई संगी- साथी ढूँढ़ रहा था |
और मुझे हमराज़ बनाकर,
अपने दिल के पन्ने खोल रहा था |
उसने मुझसे शिकायत की और बोला
दूर से सब मेरी चमक देखते हैं
पर पास आकर कोई,
हाल-ए -दिल नहीं पूछता |
मेरी सुंदरता की तारीफ़ तो सभी करते हैं,
पर इस भरी महफ़िल में,
कोई मेरे सूनेपन को महसूस नहीं करता |
उसकी बातें सुनकर तो ऐसा लगा मानों वह,
मेरी ही कहानी अपनी ज़ुबानी सुना रहा था
शायद इसीलिए वह कोई अपना सा लग रहा था |
मैंने चाँद से कहा -
मायूस न हो ए दोस्त,
यह तो है जीवन की हकीकत नहीं कोई कहानी
चेहरे की हँसी तो सभी देखते हैं पर
दिल की बेचैनी किसी ने न जानी |
दुनिया भागे बाहरी सुंदरता के पीछे
पर मन का उजलापन किसी ने न पहचाना
कहने को है रोज़ हज़ारों का आना- जाना |
मेरी बात सुनकर चाँद ज़ोर से हँसा और बोला
अभी तक तो मैं
खुद को ही अकेला समझ रहा था,
और अपने ग़म भुलाकर
दुनिया को हँसाने की कोशिश कर रहा था,
पर आज मुझे मेरा हम साया मिल गया
तू है तो मुझसे कोसों दूर सही,
पर आज तू इस दिल में उतर गया | |
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