तन्हाईयाँ
कभी अपनी सी लगती हैं तन्हाईयाँ
कभी इतना अखरती हैं तन्हाईयाँ |
अनकही बातों को शब्द देती हैं तन्हाईयाँ
सपने हज़ार बुनती हैं ये तन्हाईयाँ |
कभी दूर गए अपनों का एहसास कराती हैं ये
तो कभी पास के अपनों को भी पराया कर जाती हैं |
कभी नयी हसीं दुनिया की झलक दिखलाती हैं
तो कभी ज़िन्दगी के पुराने पन्ने पलट जाती हैं |
अपनों की पहचान कराती हैं तन्हाईयाँ
गैरों को भी अपना बनाती हैं तन्हाईयाँ |
कभी हौले से आकर मुस्कुरा जाती हैं
तो कभी आँखों में आँसू दे जाती हैं |
क्या अजीब इत्तेफ़ाक है ज़िन्दगी का ,
महफ़िल में शामिल लोग तन्हाईयाँ तलाशते हैं
और तन्हाइयों की गहराईयों से लोग महफ़िल की तऱफ भागते हैं |
मुझे मेरी तन्हाई अच्छी लगती है,
क्या कहें आज की झूठी दुनिया से ये ही सच्ची लगती है,
उम्मीदों के भार से तो तन्हाई ही हलकी लगती है|
अपने लिए चंद पल तन्हाई के मिल जाएँ ,
तो बोझिल ज़िन्दगी भी जन्नत लगती है |
आज शौहरत के पीछे भागती है ये दुनिया
और मैं तन्हाई में ही अपनी दुनिया बसाना चाहती हूँ | |
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